Administration & Management

It's Art of Governance & Not Commerce Alone

Action Against Vice Chancellors…..कुलपतियों पर कार्यवाही…… [जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो — फैज]


कुलपतियों पर कार्यवाही…… [जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो फैज]

वर्तमान परिवेश में सम्भवतः ‘मर्यादा’ शब्द निरर्थक हो गया है I ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय गणतंत्र के नागरिकों, व्यक्तियों, समूहों, संस्थानों आदि के लिए ‘स्वतंत्रता’ शब्द के पृथक – पृथक अर्थ हैं I भारतीय संविधान में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को यह  मौलिक अधिकार के रूप में प्रदत्त की गयी है I इसी क्रम में समाचार तथा सूचना के श्रोतों को भारतीय प्रजातांत्रिक सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है I परन्तु ‘ स्वतंत्रता’ शब्द के भाव एवं अर्थ को समझने व् आत्मसात करने हेतु ‘विवेक’ का उपस्थित होना अनिवार्य है I संभवतः समाचार माध्यमों ने इस शब्द का अर्थ ‘प्रतिबन्ध रहित’ अथवा ‘अनियंत्रित’  होने के रूप में ग्रहण किया है I यह स्थिति स्वयं में विस्फोटक है I यदि इस स्वतंत्रता को इस अर्थ में लेते हुए व्यावसायिक लाभ हेतु प्रयुक्त किया जाता है, तो वह न केवल इस शब्द, अपितु सम्पूर्ण प्रजातंत्र की अवमानना होगी I यदि इसका प्रयोग एक साधारण सूचना को व्यावसायिक लाभ हेतु ज्वलंत एवं गंभीर समस्या के रूप में प्रस्तुत करने हेतु किया जाता है, तथा इससे सामाजिक, नैतिक तथा राजस्व की क्षति होने कि आशंका हो, तो यह एक दुष्कर्म होगा तथा विधि एवं न्याय संगत कदापि नहीं होगा I

शीर्षक में वर्णित विषय के सन्दर्भ में माननीय न्यायाधीश महोदय द्वारा एक प्रार्थी की याचिका पर विचार करने के उपरांत एक प्राथिमिकी दर्ज करने के आदेश दिए गए थे, न कि गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में करोड़ों के घोटाले के आरोप को सत्य करार दिया गया था I  समाचार पत्र में इस तथ्य का कहीं भी वर्णन नहीं था कि न्यायाधीश महोदय का यह आदेश किन तथ्यों, परिस्थितियों, साक्ष्यों आदि पर आधारित था I ऐसे बहुतेरे प्रकरण ‘दैनिक जागरण’ के ऊपर भी न्यायालयों में लंबित होंगे I परन्तु समाचार पत्र ने असाधारण भाषा कौशल प्रस्तुत करते हुए इस समाचार को, जो संभवतः पृष्ट तृतीय लायक भी नहीं था, को  मुख्य पृष्ठ पर इस प्रकार मुद्रित किया जैसे वास्तविकता में करोड़ों का घोटाला हो गया हो और न्यायालय ने अपना निर्णय व्यक्त कर दिया हो I

पृथक पहलू से देखने पर प्रतीत होता है कि समाचार पत्र ने स्वयं को सर्वसक्तिमान मानते हुए न्यायालय की भूमिका निभा दी तथा न्यायालय एवं न्यायाधीश महोदयों के अस्तित्व को चुनौती दे दी I किसी भी व्यक्ति, समूह, संस्था इत्यादि को इस तथ्य का आभास होना आवश्यक है कि, वह जितना शक्तिशाली होता जाता है, समाज की उससे उसके मर्यादित होने की अपेक्षाएं उतनी ही बढती जाती है, तथा स्वयं उसकी जिम्मेदारी भी बढती जाती है I

इस प्रकार एक साधारण सूचना को असाधारण रूप से प्रस्तुत कर, समाचार पत्र ने केवल कुछ व्यक्तियों की छवि को ही मलीन नहीं किया, अपितु गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्व विद्यालय, जो अपनी उपलब्धियों के लिए विश्व विख्यात है, तथा इस स्थान को प्राप्त करने में अपना योगदान प्रदान करने वाले सभी शिक्षकों, शोध शास्त्रीयों, तथा कृषि की नयी विधियों तथा तकनीकियों के कृषकों में प्रचार – प्रसार को अपना लक्ष्य मानाने वाले सभी व्यक्तियों की अवमानना की है I

इस मान हानि को व्यावसायिक मुद्रा के माध्यम में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है, परन्तु आशा है कि समाचार पत्र को कुछ सौ भारतीय मुद्राओं का लाभ अवश्य अर्जित हो गया होगा I संभावना प्रबल है कि इससे समाचार पत्र समूह को सीमित राजनीतिक तथा परोक्ष (प्रचार मुद्रा से आय)  आर्थिक लाभ अर्जित हुआ हो I वैसे वर्तमान में समाचार माध्यम समाज को दिशा देने के स्थान पर समाज का मनोरंजन करने के स्रोत बन गए हैं I

अगले मनोरंजक अंक की प्रतीक्षा में ….. एक समाचार पाठक

संपर्क स्रोत

नाम : सौरभ सिंह

इ मेल : saurabhsingh@consultant.com; saurabh@aavesh.org

 

Always Yours — As Usual — Saurabh Singh

Comments are closed.